रिज़ के चुनिंदा शेर ...


“मेरी ज़िंदगी 60 से 75 बरस की हो सकती है और इसमें किसी से नफ़रत के लिए मेरे पास बिल्कुल वक़्त नहीं है..।”
***

राम नहीं बन सकते हो तुम
कितने भी बदलो भेष।
इक तीर चलाना मुश्क़िल है जब
कैसे चलेगा देश।
***

उसी की दुनिया, उसी के इंसाँ
उसी की है ये आब-ओ-हवा।
उसी का सबकुछ है दुनिया में तो
क्यों आख़िर इतनी हैं बेचैनियाँ?
***

मैं अपने आप में
उलझा बहुत हूँ।
तेरी ज़ुल्फ़ को
सुलझाऊँ कैसे?
***

उम्र तेरी बाहों में गुज़र जाए तो अच्छा है।
वगरना हम  ही गुज़र जाएँ  तो अच्छा है।
***

पूँछते हैं वो कि ‛रिज़’ कौन है?
कोई बतलाओ मत, वक़्त ख़ुद बताएगा।
***

मैं तुझे छोड़कर जाऊँगा  कहाँ।
तू किसी और का होने नहीं देता।
***

ये अदाएँ मुझे मत दिखलाओ।
इतनी  करीब  तुम मत आओ।
ये  प्रीत  की  डोरी  मत बाँधो।
मैं  तुमसे  अनजान  बहुत  हूँ।
पहले  से बदनाम  बहुत  हूँ।
***

और कितना प्यार लिखें हम।
बस तुमको सुबहों-शाम लिखें हम।
***

न जाने कैसे दिलों में जगह बना लेता है।
वो  जिसे  भी  चाहे अपना बना  लेता है।
***

उसी की आरज़ू है अब उसी की तमन्ना है।
उसी  के  पहलू  में अब ये उम्र बितानी है।
***

हर बात को कहने का तरीका हमें आता है।
चुप कहाँ रहना है, ये सलीका हमें आता है।
***

टूटे हुए दिल की कोई कीमत नहीं मिलती।
सभी को मुहब्बत में मुहब्बत नहीं मिलती।
***

ताकेंगे फिर तुमको  यूँहीं उम्रभर ऐं सनम।
तुम मेरी ज़मीं बनो मैं आसमां हो जाऊँगा।
***

मैं तुम्हारे  होंठों  की मुस्कान हो जाऊँगा।
काश तुम राधा बनो मैं श्याम हो जाऊँगा।
***

कितने ख़ुशनसीब होते हैं।
जो माँ के क़रीब होते हैं।
***

और भी करीब लगते हो
जब तुम दूर होते हो।
ये दूरियाँ... हमको
कितना जोड़कर रखतीं हैं।
***

ज़िंदगी में ख़ुदा ऐसा भी एक मुकाम आए।
हमारा वज़ीरे-आज़म हमारे भी काम आए।
***

इन बड़ी-बड़ी बातों से तेरी
वो ज़ख़्म कहाँ अब भर पाएँगे।
छोटी-छोटी बातों ने जो
दिल पर लगाकर छोड़े हैं।
***

ग़म  में भी जब मुस्कुराना पड़ता है।
कितना भारी बोझ उठाना पड़ता है।
आँखों की कितनी ख़्वाईशें होती हैं।
कितना अश्क़ों को बहाना पड़ता हैं।
***

प्यार का मतलब प्यार है, झुकना नहीं। 
क्यों झुकूँ मैं तेरे आगे, तू कोई ख़ुदा नहीं।
***

रेत की तरह फिसल गए
कई रिश्ते हाथ से।
ज़रा-सी नरमी क्या बरती मैंने
हथेली के साथ।
***

ये रात-दिन ये आसमाँ
ये हवाएं, ये जहाँ, ख़ामोश हैं।
मैं भी चुप हूँ कुछ दिनों से
तू भी ख़ामोश है।
***

कोई मुझे मेरे अतीत से मिलाए।
मैं अपना भविष्य उसके नाम कर दूँगा।
***

जानते हैं ज़हर को मगर पीते हैं।
हम ख़ुद से ज़्यादा गैरों के लिए जीते हैं।
***

तुम्हें पाने की ख़्वाईश दिल में है।
कहाँ हो तुम? आ जाओ
दिल मुश्क़िल में है।
***

चलो आज  इक दुआ माँगते हैं  ख़ुदा से।
तुम हमें माँगो हम तुम्हें माँगते हैं ख़ुदा से।
***

मैं सबसे ख़ूबसूरत लिखना चाहता हूँ। 
इक ग़ज़ल में तुमको लिखना चाहता हूँ।
***

वो किसी और के होने वाले हैं।
हम बहुत अकेले  होने वाले हैं।
***

मंज़िलें भी होती हैं खफ़ा
कभी-कभी मुसाफ़िर से।
दोष हर बार
रास्तों का नहीं होता।
***

तुम भी कभी आओ न
उसके साथ।
बेचारी तुम्हारी याद
रोज़ तनहा आती है।
***

हर वक़्त हर लम्हा हर पल सोचता रहता है।
ये दिल  उसके लिए  कितना काम करता है।
***

गुम हुए प्यार के मौसम
कुछ और बात करो।
छोड़ो भी यारों उसे
अब कुछ और बात करो।
***

कलम मेरी मेहबूबा है
बेशक़ मुझे इसकी लत है।
***

पहला और आख़िरी मुक़ाम तुम हो।
सहर हो तुम, मेरी शाम तुम हो।
***

“अगर हम असंभव को मुश्क़िल मान लें, तो वो संभव हो जाता है और मुश्किलें बहुत आसान लगने लगती हैं।”
***

“हम अपनी तुलना दूसरों से करने पर ही नहीं, बल्कि अपने वर्तमान की तुलना भूतकाल से करके भी ख़ुद को परख सकते हैं।”
***

“तुलना वो शक्ति है, जो किसी भी पहाड़ को राई और राई को पहाड़ बना सकती है।”
***

अफ़सोस के क्या-क्या समझा।
ताउम्र पत्थर को ख़ुदा समझा।
***

तेरी साँसों को दुश्वार कर सकता हूँ।
मैं चाहूँ तो तुझे प्यार कर सकता हूँ।
तेरे ग़म अपने-से लगते हैं अब मुझे।
तुझपे खुशियाँ निसार कर सकता हूँ।
***

हम तुम्हारी यादों में खोना नहीं चाहते।
मज़बूर हैं वरना जुदा होना नहीं चाहते।
***

हम चाँद किसी का हुआ करते थे।
सब वक़्त -वक़्त की बात है यारों।
दीदार- ए -क़ाबिल हुआ करते थे।
सब वक़्त -वक़्त की बात है यारों।
***

उसे प्यार है मेरी ख़ामोशी से।
मैं भी चुप इक ज़माने से हूँ।
***

सियासी दंगो ने मुरादाबादी बना दिया है वरना।
हम भी  ग़ालिब की दिल्ली  के शहरी थे।
***

वैसे तो आप गुलाब लगते हो।
बस थोड़े-से ख़राब लगते हो।
***

ज़रा-सी आँच से
पिघलने लगते हो।
हरकतें तुम्हारी कभी-कभी
मोम-सी लगती हैं।
***

“सरल बने रहना,
कठिन परिस्थितियों का
निरंतर सामना करते रहने
के प्रयासों का एक
परिणाम है..”
***

मुश्किलें, आसान कर देता है।
किसी का मुस्कुराना भी, 
कितना काम कर देता है।
***

नदियाँ ख़ुद आकर सागर से मिलती हैं,
सागर किसी से मिलने नहीं जाता।
***

ग़म  में भी  जब मुस्कुराना पड़ता है।
कितना भारी  बोझ उठाना पड़ता है।
***

दुःख लेकर, ग़म सहकर जीवन भर।
दिल के रिश्तों को निभाना पड़ता है।
***

आँखों की कितनी ख़्वाईशें होती हैं।
कितने अश्क़ों को बहाना पड़ता है।
***

अब मुहब्बत तो होने से रही
चलो कुछ और करते हैं।
***

तुमको क्या मालूम है जानां
हम कितने शर्मिंदा हैं।
आधे कबके मर चुके हैं
बस आधे ही हम जिंदा हैं।
***

“लेखक अमर होता है और उसका प्रेम भी उस वक़्त अमर हो जाता है जब उसकी प्रेमिका भी उसके प्यार में लेखिका बन जाती है।”
***

तुम इतनी नफ़रत में ज़िंदा हो अबतक। 
क्या तुम पर ख़ुदा की ये रहमत नहीं है।
***

अफ़सोस के इक हम ही न हो सके तेरे।
अफ़सोस के, सब तेरे दिल के पास रहे।
***

वो जो तुमने तोड़ दिया था मग़रूर होकर इक बार।
उसी टूटे दिल ने हमको अब तक संभाल रक्खा है।
***

कभी-कभी जब बहुत याद आते हो।
मैं  ख़ुद को भूलके  तुम हो जाता हूँ।
***

“अगर कोई आपकी मौत पे खुश होता है तो ये उसकी सबसे बड़ी बेवकूफ़ी और आपकी सबसे बड़ी हार है।”
***

वो दिन याद आते हैं
जब तुम याद करते थे।
***

सब  बोर्ड  हटाए  जायँगे।
सब  भ्रम  मिटाए जाएँगे।
तुम भी मस्जिद आओगे।
हम   भी   मंदिर  जाएँगे।
***

तुम्हारे ज़ख्म भी  ख़ुद  ही भरने लगेंगे।
किसी के ज़ख्म पे मरहम लगाया करो।
***

इब्तिदा-ए-ज़िंदगी है
कितना कुछ तो अभी बाकी है।
अभी देखी है एक दुनिया
एक दुनिया अभी बाकी है।
***

अकसर ऐसा हो जाता है।
प्रेम किसी से हो जाता है।
दो लोग मुहब्बत करते हैं।
बेचैन ज़माना हो जाता है।
***

हमें इश्क़ मत सिखाओ बच्चे, तुम्हारी उम्र से ज़्यादा उम्र हमनें किसी को भूलने की कोशिश में गुज़ारी है।
***

धूल के उड़ने से दिशाओं का पता लगता, तो इन तूफानों में कोई नहीं खोता।
***

“having more options is the first reason to commit more mistakes.”
***

“बड़ा वो नहीं होता जो प्यार में दिमाग़ लगाता है और जीत जाता है, बड़ा वो होता है जो दिल लगाता है और हार जाता है।”
***

हवाएँ भी अब तो ख़िलाफ़त में हैं।
ज़िंदगी कुछ दिनों से आफ़त में है।
***

हम भी सोचते हैं पहले अमीर हो जायें ख़ूब।
फिर एक ख़ूबसूरत-सी मुहब्बत ख़रीद लेंगे।
***

इस तरह से कहाँ अब नफ़रतें हो पायेंगी।
ख़ुद ही उनके दीदार को मरे जा रहे हैं हम।
***

“जब प्रेम के विषयों पर लिखने वाले कवि, लेखक और साहित्यकार सामाजिक मुद्दों पर लिखने लगते हैं, तो समझ लेना चाहिए कि समाज को और अधिक प्रेम की ज़रूरत आन पड़ी है।”
***

फिर उनको मनाने का बहाना मिला।
फिर ख़ता हमसे इक बार हुई।
***

किसी का भरोसा हार के तुम दुनिया भी जीत लोगे, तो वो भी नकली लगेगी।
***

मुश्क़िलों को आना ही चाहिए
क्योंकि ये कभी अकेली नहीं आती।
साथ लाती हैं पहचान
कई अपने और परायों की।
***

मुश्क़िलों को ये सोचना चाहिए
कब, कैसे और कहाँ आना है।
मुँह उठाए चली आती हैं
जैसे कोई काम नहीं।
***

किसी को दिल दे  दो, फिर वो जान माँगता है।
जिसे रिज़ मिल चुका है वो रिज़वान माँगता है।
***

तेरी एक अदा पे सौ बार मरते हैं।
हर एक अदा पे  सौ बार मरते हैं।
***

हर  चेहरा अब  उसी  का  चेहरा लगता है। 
अब फ़लक में बहुत-से चाँद दिखाई देते हैं।
***

और भी मुश्क़िल जीना होता है।
ख़्वाब जब उसके  रोज़ आते हैं।
***

शायद मेरा ख़्याल सता रहा है उसे।
मुझे उसकी बहुत फ़िकर हो रही है।
***

तकलीफ़ बढ़ाना उसकी फ़ितरत है।
दिल को फिर भी उससे मुहब्बत है।
***

तामीरे-मुहब्बत  का  काम चल रहा है।
वो शख़्स मुझसे बच के निकल रहा है।
***

मेरे मुल्क़ में बहुत-से पागल पत्रकार हैं।
बिकी हुई मीडिया सिरफ़िरे अख़बार हैं।
***

इक उम्र से बैठे थे हम बाहर मैख़ाने के।
इक नज़र देखके उनको शराबी हो गए।
***

मैं  कभी  तुम्हारा  था ये गुमान अभी बाकी है।
तुम ये जान भी ले लो ये  जान अभी बाकी है।
***

गिरने का भी एक लेवल रखो।
ज़मीन पर गिरो, गड्डों में नहीं।
***

वो मुझको भूल जाने की फ़िराक में है।
मेरी नज़रें अब भी उसकी तलाश में है।
***

मैं तमाम रोगों की दवा चाहता हूँ।
माँ तेरे आँचल की हवा चाहता हूँ।
***

मुझे अक्सर रोने से बचा लेती है।
माँ मुझे  दामन  में  छुपा लेती है।
***

तेरी तारीफ़ फ़क़त लफ्ज़ों की बर्बादी है। 
माँ तू  सचमुच  ज़न्नत  की  शहजादी है।
***

सफ़र अच्छा लगता है
जब तुम साथ होते हो।
मंज़िल साथ चलती है
जब तुम साथ होते हो।
***

कुछ ग़लत नहीं है
उदास रहने में।
तुम साथ नहीं हो
मैं क्यों मुस्कुराऊँ?
***

“चाँद की तरह पृथ्वी के पीछे मत भागो, सूरज बनो, ख़ुद ये दोनों पागलों की तरह तुम्हारे पीछे भागेंगे।”
***

जुदाई  का आलम
कुछ अलग ही  होता है।
लोग खफ़ा-खफ़ा रहते हैं
दिल जुड़ा रहता है।
***

हर  नज़र यहाँ  इक  ख़्वाब को  ढूँढती है।
जिस तरह कोई रात मेहताब को ढूँढती है।
***

काश.. तुम हमारे होते
हम पूरे हो जाते..
मुक़म्मल हो जाते कई सफ़र
कई ख़्वाब पूरे हो जाते..
काश.. तुम हमारे होते..
***

किस तरह भुलाऊँ उसे
कुछ समझ नहीं आता।
इन आँखों को उसके सिवा
कुछ नज़र नहीं आता।
मैं बैठा रहता हूँ इन्तेज़ार में
घंटों तक..वहीं पर
जहाँ अब वो नहीं आता।
***

उससे मिलने की चाहत
अब पुरानी-सी हो गई।
हर बात हर मुलाक़ात
इक कहानी-सी हो गई।
अब उसे पाने की तमन्ना
नहीं है दिल को
बिछड़कर उससे रहने की
आदत-सी हो गई।
***

वो जितना मुझे सता रही है।
मेरे और भी क़रीब आ रही है।
***

काश कहीं ऐसा होता
सब मिलजुल के एक हो जाते। 
हिंदू-मुस्लिम छोड़छाड़ के
ईद-दीवाली हम मनाते।
***

तेरी कत्थई आँखों से इज़हार होने लगता है।
जब तू  सामने आती है, प्यार होने लगता है।
***

तुमसे दूर रहकर ये दिल, ऐसे रुठ जाता है।
जैसे किसी बच्चे का खिलौना टूट जाता है।
***

शायद अब न होगा मिलना
दोबारा उससे
बड़ी ख़ामोशी से गया है
इस बार मुझसे झगड़कर वो।
***

जिस दिन मैं दुनिया से जाऊँ
बस इतना कर देना।
मेरी कोई नाज़ुक -सी कविता
चुपके से पढ़ देना।
***

मेरी रंगों की डिब्बी खो गयी है।
ज़िंदगी बहुत सादा  हो गयी है।
***

सफ़र अच्छा नहीं लगता घर में ही दुनिया बना रक्खी  है।
नज़ारे अच्छे नहीं लगते तेरी सूरत दिल में सजा रक्खी है।
***

तुम्हारे आने से और जाने से
अब फ़र्क ही क्या है?
तुम जा चुकी हो ज़िंदगी से
सदा के लिए
और बाकी हो दिल में
हमेशा के लिए।
***

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