सतरंगी होली
आज आसमाँ सतरंगी है
कहीं पीला कहीं लाल
धरती भी कुछ कम नहीं है
है चारों ओर गुलाल।
जब प्रकृति इतनी रंगीन है
तो हम कैसे सादा हो जाएँ
प्रकृति के रंगों को लेकर
सतरंगी होली मनाएँ।
देखो फागुन आ चुका है
अब पानी से क्यों घबराएँ
डर सरदी का छोड़ के हम-तुम
इक-दूजे को रंग लगाएँ।
नई-नई पोशाकें पहनें
खीर-पापड़-गुजियाँ खाएँ।
जो कोई रूठा हो हमसे
आओ उसको आज मनाएँ।
खुशियों के रंगों को लेकर
सतरंगी होली मनाएँ।
सब मिलजुल के एक हो जाएँ
वैर-भाव को दिल से मिटाएँ
जात-धरम को भूल-भाल के
प्रेम का पावन पर्व मनाएँ।
कोई किसी से खफ़ा न हो
कोई किसी से जुदा न हो
कोई भी मज़बूर न हो
खुशियों से कोई दूर न हो
खुशियाँ झूमें चारों ओर बस
सब ग़म अपने घर को जाएँ
चेहरों पे मुस्कानें लेकर
सतरंगी होली मनाएँ।
होली के इस शुभ दिवस पर
अपने मन का मैल मिटा लें।
इक-दूजे को बाहों में भरकर
हम आपस की दूरी मिटा लें।
ख़ुशियाँ आन खड़ी हैं द्वार पे
आओ इनको गले लगा लें।
हिरण्यकश्यपों का बध करके
प्रहलादों का देश बनाएँ।
होलिकाओं को जलाकर
सतरंगी होली मनाएँ।
बहुत हुई रंगों की होली
इन झूठे संबंधों की होली।
ये होली भी क्या होली है
जिसमें असली रंग न हों,
केवल धूल उड़े चहुँ ओर
पर भाई, भाई के संग न हो।
इससे तो बेहतर है हम सब
जात-धरम एक हो जाएँ
इन सच्चे रंगों के बल पे
सतरंगी होली मनाएँ।
- रिज़वान रिज़
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Thankyou...
-Rizwan Riz