मौत

आज तुम बहुत याद आ रही हो
ऐं मौत! इतना क्यूँ सता रही हो।
क्या तुम भी परेशां हो किसी ग़म से
आख़िर तुम क्यूँ ज़िद दिखा रही हो।

सोचते हैं क्या पाया, ये ज़िंदगी जीकर
ज़ख्मों को लेकर, ग़मों को पी-पीकर।
काश! तुम पहले मिलतीं तो, ये हाल न होता
बेबस-सी ज़िंदगी का मलाल न होता।
ख़ैर, अब आ ही गई हो तो, इतना न शर्माओ
मुझको ज़रा छुओ, गले से लगाओ।
अरे! दूर क्यूँ जा रही हो..
ऐं मौत! इतना क्यूँ सता रही हो।

कुछ देर ठहरो, ज़रा ज़िंदगी से मिल लूँ
इस बेवफ़ा से दो बातें तो कर लूँ।
मुझको छोड़ देने का बहाना तो पता चले
तुम ज़रा छुप जाओ, इसको पता न चले।
क्यूँ करीब आ रही हो..
ऐं मौत! इतना क्यूँ सता रही हो।

ज़िंदगी तेरी याद में हम आँसू बहाएंगे।
चाहके भी अब कभी न, तुमसे मिल पाएंगे।
जब हम तुम्हारे साथ थे, तुम बहुत मगरूर थीं
आख़िर तुम ज़िंदगी थीं, बेवफ़ाई को मज़बूर थीं।
अब हमारे बिछड़ने की घड़ी आ चुकी है
उधर देखो मौत खड़ी है..वो आ चुकी है।
ज़िंदगी बेवफा सही मगर तुमसे ज्यादा प्यारी है।
इसका भी इक दौर था पर अब तुम्हारी बारी है।
अब मैं तुम्हारे इश्क़ में बीमार हो चुका हूँ
साथ तुम्हारे चलने को तैयार हो चुका हूँ।
अब क्यूँ देर लगा रही हो..
ऐं मौत! इतना क्यों सता रही हो।

- रिज़वान रिज़


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