इक-इक करके बाँटा था जो, हर पल जैसे बर्बाद हुआ

इक-इक करके बाँटा था जो, हर पल जैसे बर्बाद हुआ
भीड़ में कितने तनहा थे हम, आज हमें अहसास हुआ।

लरज़ रही थीं दीवारें जब, अनजान बने हम बैठे थे
पूरा घर ही बिखर गया तब, हमको ये एहसास हुआ।

मीठी बातें वो भोलापन, तुम सचमुच कितने अच्छे थे
तुमसे झगड़के बैठ गए तब, हमको ये अहसास हुआ।

रोये-धोये, चिल्लाये हम, पूरा घर भी देख लिया
इक छोटी-सी आहट में, हमको तेरा एहसास हुआ।

झूठी कसमें झूठे चेहरे आख़िर, कितने चलने वाले थे
ख़ुद आईने ने बतलाया तब, हमको ये अहसास हुआ।

मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर, सारे  जाकर देख लिए
आख़िर दिल में झाँका तो, अल्लाह तेरा एहसास हुआ।

पूरी ज़िंदगी यूँही गुज़री, सामान-ए-आख़रत कुछ भी नहीं
कब्र में जाकर लेटे 'रिज़वाँ', तब हमको ये एहसास हुआ।

-रिज़वान रिज़

Comments

Popular posts from this blog

तुम लौट आओगे

वो प्यारे दिन

रिज़वान रिज़ की बुक ख़रीदें।