बचपन

उस दिन जो गिरी अचानक
दीवार से इक तस्वीर
ले गई मुझे बरसों पीछे
मेरे बचपन में।

पहले तो शक-सा हुआ
मुझे मेरे चेहरे पर
सोचने लगा लिए हाथ में
वो तस्वीर बचपन की
सचमुच ऐसा था मैं
मेरे बचपन में।

मानों वो तस्वीर न थी
बचपन की पूरी कहानी थी
खो गया मैं उन कहानियों में
जो माँ मुझे सुनाती थी
मेरे बचपन में।

याद आई वो बचपन की मस्ती
बारिश के पानी में डूबती कभी
तैरती हमारी कागज़ की कश्ती
वो लड़ते-झगड़ते स्कूल को जाना
कुछ झूठे कुछ सच्चे बहाने बनाना
आदतें थीं कुछ ये मेरी
मेरे बचपन में।

दोपहरी में जाकर तालाब में नहाना
तपते सूरज से आँखें लड़ाना
ठहरे हुए पानी में फेंकते हुए पत्थर
बचपन के यारों से गप्पे लड़ाना
सोये हुए कुत्ते को बेवज़ह जगाना और
फिर घबरा के भाग जाना
कितना मज़ा आता था
मेरे बचपन में।

इतना ही सोच पाया था
बचपन के बारे में तभी
अचानक पीछे से आवाज़ आई
इक प्यारे-से बच्चे ने आवाज़ लगाई
फिर से गिरी हाथों से तस्वीर
यूँ लगा कितना दूर गया मेरा बचपन
उस मासूम-से बच्चे की आँखों में मैंने
फिर से महसूस किया मेरा बचपन।

-रिज़वान रिज़

Comments

Popular posts from this blog

तुम लौट आओगे

वो प्यारे दिन

रिज़वान रिज़ की बुक ख़रीदें।