कुछ तुम कुछ हम दूर हो गए।

कुछ तुम कुछ हम दूर हो गए।
वक़्त के हाथों मज़बूर हो गए।

अंधेरी रात में देखे सपने कई।
उजाले में सब चूर-चूर हो गए।

मैं उनको मनाता कैसे आख़िर।
वो दौलती अब मग़रूर हो गए।

शौक़ तो हमें भी था जीने का।
इन्सां थे मौत का दस्तूर हो गए।

-रिज़वान रिज़

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