इक रोज तुम मिले थे।
अजनबी बनके।
और अब तुम ही तुम हो
ख़्वाबों और हक़ीक़त में।
मेरे अपनों में और सपनों में।
ख़्वाबों और हक़ीक़त में।
मेरे अपनों में और सपनों में।
अब तो तुम्हारे लिए ही
धड़कता है ये दहर।
तुम ही तुम बस नज़र आते हो
मैं देखता हूँ जिधर।
अँधेरों में, उजालों में।
मेरे ख़्यालों में बस
तुम ही तुम हो..।
-रिज़वान रिज़
आभार : गूगल प्ले, कुकू एफ एम।
आभार : गूगल प्ले, कुकू एफ एम।
Nice poem and nice voice also☺
ReplyDeleteI love you my dear sweet my writer
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