उदास हर दिन हर शाम तनहा-तनहा है।

उदास हर दिन, हर शाम तनहा-तनहा है
किस तरह बताएँ अब, रात का आलम।

हर तरफ़ तुम हो बस, कुछ और नहीं है
हम नहीं जानते, क़ायनात का आलम।

जब कोई हँसता है, तुम महसूस होते हो
यहाँ तक है तुम्हारी, मुस्कान का आलम।

न कोई सावन, न बहार बाक़ी है अब
दिल क्या जाने किसी, बरसात का आलम।

अगर तुम मिलो तो, हर ग़म जुदा हो
तुम क्या जानो 'रिज़वाँ' मुलाक़ात का आलम।

-रिज़वान रिज़

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