सच क्या है ?

सच क्या है ?
कभी सोचा है।
कभी-कभी जो दिखता है
वो सच नहीं होता है।
और सच छुप जाता है
किसी अँधेरे पीछे।

मैंने कई ऐसे लम्हों का
अनुभव किया है जब
सच बहुत परे था
मेरे वाले सच से।
और अफ़सोस कि सच भी
सदा रहता नहीं एक
सभी के लिए
ये बदलता है काल-देश और
इंसान-दर-इंसान।

जब हम नहीं बैठा पाते हैं सामंजस्य
एक सच के साथ तो
बना लेते हैं एक और नया सच।
मैं सोचता हूँ कई बार कि सचमुच
ये सच क्या है ?
पर अक्सर सच बताने वाले ही
होते हैं सच से कोसों दूर
और करते हैं झूठी बातें
किंतु वो सच है उनके लिए।

सचमुच, सच तो कुछ भी नहीं
ये तो है बस
समय और परिस्थितियों
का सामंजस्य।

-रिज़वान रिज़

Comments

Popular posts from this blog

तुम लौट आओगे

वो प्यारे दिन

रिज़वान रिज़ की बुक ख़रीदें।