महबूब शहर.. दिल्ली

मैं केवल तुमसे प्यार नहीं करता।
तुम्हारे शहर से भी उतनी ही
मुहब्बत करता हूँ, जितनी तुमसे।
ये बात मुझे आज ही रेलवे-स्टेशन पे
पता चली।
हालांकि ऐसा सुनना तुम्हें अच्छा न लगे।
मगर मुझे आज दिल्ली को छोड़ते हुए
ऐसा ही महसूस हो रहा है।
मुझे समझ नहीं आता किसका
ग़म ज़्यादा है, तुमसे दूर होने का
या दिल्ली के छूट जाने का।
ख़ैर, ये शहर भी तो तुम्हारा ही है।

तुम्हारी बहुत-सी यादें, बहुत-सी बातें
हमारा बचपन, और ज़िंदगी का एक
शायद सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा
छुपा है, इस दिल्ली में।
और क्या तुम जानती हो
इतनी सारी यादों, कहानियों और
अनुभव के बाद  मेरा दिल भी
दिल्ली जैसा हो चुका है।
तुम चाहो तो इसमें आकर
रह सकती हो ये भी तो आख़िर
तुम्हारा ही घर है।

- रिज़वान रिज़


Comments

Popular posts from this blog

तुम लौट आओगे

वो प्यारे दिन

रिज़वान रिज़ की बुक ख़रीदें।