दिन गुज़र रहे थे

रातें बीत रहीं थीं
दिन गुज़र रहे थे
किसी की जुदाई में हम
धीरे-धीरे मर रहे थे।
दिन गुज़र रहे थे..

चाहते थे कुछ कहना
कुछ बताना उनको
अपने बारे में
वो किसी और का
ज़िक्र कर रहे थे,
हँसकर..
हम सब्र कर रहे थे।
दिन गुज़र रहे थे..

सब मशरूफ थे
अपने-अपने कामों में
कोई सँवरता था
किसी के लिए
कोई मचलता था
किसी के लिए
कोई तड़पता था
किसी के लिए
तो कोई लिखता था
किसी के लिए
पूरी दुनिया चल रही थी
हम यूँ ही गुज़र कर रहे थे।
दिन गुज़र रहे थे..

हर शख़्स ख़ूबसूरत
चारों तरफ मुहब्बत
तन्हाई में इक हम
कितनी हसीन दुनिया में
पल-पल बिखर रहे थे।
रातें बीत रहीं थीं और
दिन गुज़र रहे थे..

-रिज़वान रिज़

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