दौर-ए-मुश्किल
सुब्हों-शाम नज़र आता है।
हर शख़्स परेशान नज़र आता है।
अब ख़बर कोई सुनाता ही नहीं।
सब वीरान नज़र आता है।
अजीब दौर-ए-मुसीबत है।
सिर्फ़ नुकसान नज़र आता है।
कितनी भी कोशिशें कर लो।
सब नाकाम नज़र आता है।
हम ऐसे दौर-ए-इंसां में हैं जहाँ
मुश्किल से कोई इंसान नज़र आता है।
-रिज़वान रिज़
Rizwan bhai kya shayri likhte ho la jabab
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