दिल के राज़ खुलकर बताता कौन है।
दिल के राज़ खुलकर, बताता कौन है।
बेवज़ह की उलझन, बढ़ाता कौन है।
झूठे चेहरे अक्सर मीठी बातें करते हैं।
ज़ख्म पे सच्चा मरहम लगाता कौन है।
ग़नीमत है अभी तक तो सब ख़ामोश हैं।
देखना है, मेरे दर्द पे मुस्कुराता कौन हैं।
कोई चेहरा न याद बाक़ी है अब ज़हन में।
हर रात मेरी नींदों में, फिर आता कौन है।
बड़ा नाबाक़िफ़ है वो, ख़ुदा की ख़ुदाई से।
पूँछता है के, दुनिया को चलाता कौन है।
तुम यहाँ से जाओ, या जहाँ से 'रिज़वाँ'
भला किसी के लिए आँसू बहाता कौन है।
-रिज़वान रिज़
Sach baat. ......wonderful
ReplyDeleteशुक्रिया। प्रिय पाठक।
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