उनके लिए

सुनों! कभी भी
इस ग़लतफ़हमी में
मत रहना कि
किसी भी मायने में
कम हो तुम।
मैं यक़ीन के साथ
कह सकता हूँ..
हर शय से हसीं
हर मय से नशीं।
हर सुब्ह से शादाब
किसी रात का मेहताब।
लिए चेहरा उदास
सारी बातों से ख़ास।
जैसे सादगी की एक
मूरत हो तुम।
मैं यक़ीन के साथ
कह सकता हूँ..
गुलों से कहीं ज़्यादा
ख़ूबसूरत हो तुम।

-रिज़वान रिज़

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